कंजूसी की आदत, किसी भी व्यक्ति को- वेल्थ और हैप्पीनेस, दोनों से दूर कर देती है। धन को हम 3 तरीके से प्रयोग कर सकते हैं, उसका भोग कर सकते हैं, दान कर सकते हैं या फिर फिजूल में बर्बादी। फिजूलखर्ची एक अलग बात है, लेकिन अगर पैसे का, सही तरीके से भोग और दान नहीं हो रहा, तब भी उसका नाश ही है। आइए, दान की कला सिखाती, हमारी आज की कहानी के साथ आगे बढ़ें।
काफी समय पहले की बात है, एक व्यक्ति घने जंगल से गुजर रहा था। थक चुका था और प्यास भी लग रही थी, थोड़ी ही दूरी पर उसे, एक नदी दिखी। वहां रुका और नदी का पानी पिया। इस दौरान उसके मन में एक सवाल आया, तो उसने नदी से पूछा कि तुम इतनी छोटी हो, फिर भी तुम्हारा जल इतना मीठा है और दूसरी तरफ सागर, इतना बड़ा है, लेकिन उसका पानी खारा है। ऐसा क्यों? नदी अपनी, तेज रफ्तार से भागे जा रही थी और बिलकुल फुर्सत में नहीं थी। इसलिए उसने कहा, सागर से ही जाकर पूछो।
वो आदमी आगे बढ़ा और समुद्र तक पहुंचा। उसने समुद्र से उसी सवाल का जवाब मांगा। तब सागर बोला- नदी एक हाथ से लेती है, और दूसरे हाथ से, आगे बढ़ा देती है। दूसरों को देने के लिए ही, वो दिन-रात दौड़ती है। इसलिए उसका पानी मीठा है। और दूसरी तरफ मैं हूं, जो सिर्फ सभी से लेता है। यही कारण है कि रुका हुआ और सहेजकर रखने की वजह से मेरा जल, खारा है। अब आप समझ गए होंगे, कि देने वाले की जिंदगी में, हमेशा मधुरता रहती है। इसलिए दान करें, लेकिन ऐसे, कि अगर दाएं हाथ से दान दे रहे हैं, तो बांए हाथ को इसका पता भी न चले। अब भगवान को ही देख लीजिए, ये कुदरत उन्होंने हमें दान में दी है, लेकिन क्या, कहीं किसी पहाड़ या नदी पर लिखा हुआ है कि यह उसने बनाया है।